Wednesday, September 22, 2010

स्वामी शिवानन्द का कहना है

सर्वप्रथम स्वयं को सुधारें, तभी पूरा संसार सुधारा जा सकता है| तुम संसार की सहायता किस प्रकार कर सकते हो जब तुम स्वयं ही कमजोर और अज्ञानी हो|यह तो एक अंधे आदमी का दूसरे अंधे आदमी को रास्ता बताने जैसा ही होगा| दोनों ही गहरे गर्त में गिर जाएँगे|-

नानक जोत निरंजन बण आई

नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
अरजोई निराधार,
हे दाता,
पहली उपमा तेरी दाता,
दूजी तेरी खुदाई।
तीजी तेरी ओट आसरा,
चौथी रहनुमाई।
पंच घरों सो तेरा मान,
पंचम सांझ जगाई।

मैं नीच तेरे दास को दासा,
धन नानक सब तेरी वडियाई।

नानक जोत निरंजन बण आई
प्रभ दर्शन अगम रूप कहाई
चड़विन्दा दास तिसकी शरणाई
तन, मन, धन सब भेंट चढ़ाई।

नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला

ऋषि भरद्वाज

ऋषि भरद्वाज