Wednesday, September 4, 2013

Ladkiyan Chhoona Chahtee Hain Aasmaan/ Ashok Lav



लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
--अशोक लव
लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
परंतु उनके पंखों पर बाँध दिए गए हैं
परंपराओं के पत्थर
ताकि वे उड़ान न भर सकें
और कहीं छू ना लें आसमान.

लड़कियों की छोटी-छोटी ऑंखें
देखती हैं बड़े बड़े स्वप्न
वे देखती हैं आसमान को
आँखों ही आँखों में
नापती हैं उसकी ऊँचाइयों को.

जन्म लेते ही
परिवार में जगह बनाने के लिए
हो जाता है शुरू उनका संघर्ष
और हो जाती है ज्यों ज्यों बड़ी
उनके संघर्ष का संसार बढ़ता जाता है.

गाँवों की लड़कियाँ
कस्बों-तहसीलों की लड़कियाँ
नगरों महानगरों की लड़कियाँ,
लड़कियाँ तो लड़कियाँ ही होती है
उनके के लिए जंजीरों के नाप
एक जैसे ही होते हैं.

लड़कियाँ पुरुषों की माँद में घुसकर
उन्हें ललकारना चाहती हैं
वे उन्हें अंगड़ाई लेते समय से
परिचित कराना चाहती हैं.

पुरुष उनके हर कदम के आगे
खींच देते हैं लक्ष्मण रेखाएँ
लड़कियाँ जान गई  
पुरुषों के रावणत्व को
इसलिए वे
अपाहिज बन नहीं रहना चाहती बंदी
लक्ष्मण रेखाओं में
वे उन समस्त क्षेत्रों के चक्रव्यूह को भेदना
सीख रही हैं
जिनके रहस्य समेट रखे थे पुरुषों ने.

वे गाँवों की गलियों से लेकर
संसद के गलियारों तक की यात्रा करने लगीं हैं
उनके हृदयों में लहराने लगा है
समुद्र-सा उत्साह
अंधड़ों की गति से
वे मार्ग कि बाधाओं को उड़ाने में
होती जा रही हैं सक्षम.

वे आगे बढ़ना चाहती हैं
इसलिए पढ़ना चाहती हैं
गाँवों की गलियों से निकल
स्कूलों की  ओ़र जाती लड़कियों कि कतारों कि कतारें
सडकों पर साईकिलों की घंटियाँ बजाती
लड़कियों की कतारों की कतारें
बसों में बैठी
लड़कियों की कतारों की कतारें
लिख रही हैं नया इतिहास.

लोकल ट्रेनों-बसों से
कॉलेजों-दफ्तरों की ओ़र जाती लड़कियाँ
समय के पंखों पर सवार होकर
बढ़ रहीं हैं छूने आसमान.

उन्होंने सीख लिया है-
पुरुषपक्षीय परंपराओं के चिथड़े-चिथड़े करना
उन्होंने कर लिया है निश्चय
बदलने का अर्थों को-
उन तमाम ग्रंथों में रचित
लड़कियों विरोधी गीतों का
जिन्हें रचा था पुरुषों ने
अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए.

लडकियाँ
अपने रक्त से लिख रही हैं
नए गीत
वे पसीने की स्याही में डुबाकर देहें
रच रही हैं
नए ग्रंथ.

वे खूब नाच चुकी हैं
पुरुषों के हाथों की कठपुतलियाँ बनकर
पुरुषों ने कहा था-लेटो
वे लेट जाती थीं
पुरुषों ने कहा था-उठो
वे उठ जाती थीं
पुरुषों के कहा था-झूमो
वे झूम जाती थीं.

अब लड़कियों ने थाम लिए हैं
कठपुतलियाँ नचाते
पुरुषों के हाथ
वे अब उनके इशारों पर
न लेटती हैं
न उठती हैं
न घूमती हैं
न झूमती हैं.

वे पुरुषों के एकाधिकार के तमाम क्षेत्रों में
करने लगी हैं प्रवेश
लहराने लगी हैं उन तमाम क्षेत्रों में
अपनी सफलताओं के ध्वज  
गाँवों-कस्बों,नगरों-महानगरों की लड़कियों का
यही है अरमान-
वे अब छू ही लेंगी आसमान.
(M)+91-9971010063