पहली नजर में ही यह भक्ति-आस्था और वैभव का अनुपम संगम प्रतीत होता है। अद्भुत, अविश्वसनीय, असाधारण व अमूल्य ये पर्यायवाची शायद इस मंदिर के लिए कम हैं। अपने वैभव व मौलिकताके लिए विख्यात काशी के श्रीसत्यनारायणमानस मंदिर को यदि हरि-हर यानी भगवान विष्णु और देवाधिदेव शंकर के मिलन का एक प्रमुख केंद्र कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह मंदिर खुद को सावन में सजाता है फलत:यह प्रभु विश्वनाथ से जुड जाता है, जबकि अन्य दूसरे विष्णु मंदिर कार्तिक व चैत्र मास में अपने को सजाते-संवारते हैं। सावन में काशी आने वाले बाबा के भक्त मानस मंदिर में बाबा के आराध्य भगवान राम का भी दर्शन कर अपने को कृत्य-कृत्य कर लेते हैं। यही कारण है कि आज मानस मंदिर हरि-हर के मिलन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। एक ओर यह मंदिर भगवान के साक्षात विग्रह का दर्शन कराते हैं वहीं दूसरी ओर उनके काव्य चरित्र की परिक्रमा भी। निश्चित रूप से यह मंदिर दुनिया भर में गोस्वामी तुलसीदास का सजीव स्मारक है। इसे भारतीय कला की दृष्टि से मानस के आधार पर बनाया गया है। लगभग पांच दशक पूर्व सन् 1960में मानस मंदिर के निर्माण कार्य का शिलान्यास हुआ था और सन् 1964में तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्लीडॉ.राधाकृष्णन ने नवनिर्मित मंदिर का उद्घाटन किया। यह मंदिर सेठ रतन लाल सुरेकाने अपने माता-पिता की स्मृति को जीवंत रखने के उद्देश्य से बनवाया। एक अन्य मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना भी था। सावन के महीने में मानस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है जब लगभग चार दशक पूर्व लगाए गए रामायण के विभिन्न कथानकों पर आधारित यंत्र चलित दर्जनों पुतलियोंको देखने के लिए जन सैलाब उमडता है। इनमें पूर्वी उत्तर-प्रदेश व बिहार के सर्वाधिक श्रद्धालु होते हैं। मकरानाव जोधपुर के सफेद संगममरमरसे बने चमचमाते मंदिर की विशाल इमारत हर शख्स को अभिभूत करती हैं। विशाल प्रस्तर खंडों पर संपूर्ण श्रीराम चरित मानस का आलेख अद्भुत प्रतीत होता है। सफेद पत्थरों की हर दरो-दीवारपर रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण आदि के संपूर्ण दोहे, पद व छंद विधिवत उकेरे गए हैं। पत्थरों पर गढी गई कला की विविधता मनन करने पर मजबूर करती है तो इसकी सृजनात्मकताचकित। बेशक, यह धरोहर गर्व की अनुभूति कराने के साथ ही समृद्धि का भी प्रतीक है। काशी भ्रमण पर आई जबलपुर निवासी रागिनी द्विवेद्वीबताती हैं कि मंदिर के विशाल परिसर में प्रवेश करते ही नयनाभिराम दृश्य परिलक्षित होता है। गाजीपुर के बलराम यादव इस मंदिर को देखने के बाद वाह-वाह कर उठे। इसी क्रम में मजहब की दीवार तोडते हुए बरेली से काशी भ्रमण पर आए हामिद अंसारी पहुंच गए मानस मंदिर परिसर में। अवलोकन के बाद उनके पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं थे। इस विशाल मंदिर के उत्तर दिशा में हिमालय से गंगा अवतरण का दृश्य है तो दक्षिण में रामेश्वर मंदिर। माता सीता की कुटी भी अपने आप में अद्वितीय है। मंदिर के सौन्दर्य को बखूबी तराशा-निखारा गया है। पत्थरों की चमक इतनी प्रखर है कि लोग देखते ही रह जाते हैं। सुखद अनुभव कराता है मंदिर परिसर में विचरण। ऐसा लगता है जैसे मानस मंदिर का निर्माण कराने वालों ने अपने जीवन के हर अनुभव को, यहां तक की अध्यात्म को भी अपने नजरिए से देखा हो। मंदिर परिसर में मूल विग्रह भगवान राम, लक्ष्मण, जानकी व हनुमान का है। इसके दायीं ओर माता अन्नपूर्णा व बाबा विश्वनाथ का विग्रह है और बांयीओर श्रीसत्यनारायणभगवान का यानी लक्ष्मी नारायण का। मानस मंदिर के अधीक्षक 80वर्षीय आचार्य बटुकप्रसाद शास्त्री काशी की उन विभूतियों में शुमार हैं, जिन्होंने इस मंदिर के शैशव काल से अब तक के इतिहास को करीब से देखा है। आचार्य शास्त्री मंदिर निर्माण के दौरान उन दिनों की चर्चा करते हैं जब मंदिर के संगमरमर पर उकेरने के लिए काशीराजसंस्करण के रामचरित मानस का चयन किया गया। इस संस्करण का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। अखिल भारतीय विद्वत परिषद के राष्ट्रीय संयोजक व ज्योतिषाचार्य आचार्य कामेश्वर उपाध्याय कहते हैं कि अनादि काल से महोत्सवोंव मेलों की नगरी रही काशी में मानस मंदिर ही एकमात्र ऐसा केंद्र है, जिसने मेला संस्कृति को आज भी स्थायी रूप से सहेज कर रखा है। काशी आरंभ से ही विष्णु और शिव की मिलन नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रही है, जहां पहले पंचगंगाघाट पर बिन्दु माधव इसका केंद्र हुआ करता था, आज वह केंद्र मानस मंदिर हो गया है। इस मंदिर की एक प्रमुख विशेषता इसका प्राइमलोकेशनऔर आसानी से पहुंच पाना है। |