Monday, June 24, 2013
हिमालय में जल-प्रलय / अशोक लव
पंद्रह-सोलह जून की वर्षा ने उत्तराखंड में जो विनाश-लीला की है, उसमें हजारों व्यक्ति अपने प्राण गँवा चुके हैं. सैंकडों घर नदियों में बह गए हैं. गाँवों के गाँवों का कोई आता-पता नहीं है. ज़िंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हज़ारों लोग पहाड़ों के अनजान रास्तों में फंसे पड़े हैं. हज़ारों पहाड़ों में भटक रहे हैं. मृत्यु का ऐसा तांडव अपने पीछे अनेक प्रश्न छोड़ गया है.
Wednesday, June 12, 2013
World Enviornment Day celebrated at Dwarka
Sukh Dukh Ke Sathi celebrated World
Environment Day on 9th June in Community Hall of Chitrakoot Apartments
Sector-22, Dwarka .Chief Guest of the function was Shri Rajesh Gehlot,
Chairman Standing Committee South Municipal Corporation
of Delhi (SDMC). Other distinguished guests were Dr. Ashok Lav - an
eminent author and educationist, Dr. PK Datta - a renowned naturalist,
Smt Neeta Arora – Principal Venkateshwara International School Dwarka
Sector 18, Shri Diwan Singh –environment activist, Shri Sushil Kumar –
President Dwarka Forum, Smt Cicily Kodian – President Association of
Neighbourhood Ladies Get Together, Sri S S Dogra-Dwarjka Parichay, Shri
Rajeev Sood – Art of Living teacher and executives of other social
organizations of the area. SDKS General Secretary Shri S.K. Kapoor
conducted the programme.
Sunday, June 9, 2013
नेशनल ला यूनिवर्सिटी में नाटकों का मंचन
राष्ट्रीय ला विश्व विद्यालय द्वारका(दिल्ली) के प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों ने चार नाटकों का मंचन किया | इस अवसर पर दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश श्रीमती गीता मित्तल मुख्य अतिथि थीं. इस अवसर पर शिक्षाविद् , लेखक एवं कवि श्री अशोक लव,जिन्हें साठ सम्मान प्राप्त हुए हैं तथा दिल्ली के कवि श्री प्रेम बिहारी मिश्र को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था.विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ. रणवीर सिंह ने विद्यार्थियों के परिश्रम की प्रशंसा करते हुए उन्हें इस दिशा में सक्रिय रहना चाहिए| इस नाट्य-प्रस्तुति में विश्वविद्यालय के प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों ने समाज में विधि एवं न्याय के महत्त्व को दर्शाने वाले चार नाटकों ,पिगमेलियन (जॉर्ज बर्नार्ड शॉ) ,ट्रायल बाई जूरी (डब्ल्यू एस. गिल्बर्ट और आर्थट टालिवन), ट्रायल बाई जूरी (डब्ल्यू एस. गिल्बर्ट व आर्थट टालिवन)और द बैकग्राउंड (एच.एच. मुनरो की कहानी का नाट्य-रूपांतरण) की प्रस्तुति की.
इन नाटकों के मंचन के प्रेरक प्रोफेसर डॉ. प्रसन्नान्शु थे. उनके मार्गदर्शन में इससे
पूर्व भी नाटकों का मंचन होता रहा है. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि साहित्य को केवल
पढ़ा ही नहीं बल्कि जिया जाता है. विद्यार्थियों ने इसे सत्य सिद्ध कर दिया है. प्रोफेसर डॉ. प्रसन्नान्शु स्वयं श्रेष्ठ
लेखक एवं कवि हैं.
‘नेशनल ला यूनिवर्सिटी’ के सभागार में आयोजित इन नाटकों
को दर्शकों ने खूब सराहा.
Friday, June 7, 2013
Tuesday, June 4, 2013
व्यंग्यकार डॉ हरीश नवल
डॉ. हरीश नवल ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकों
का संपादन भी किया है, जिसमें प्रमुख है भारतीय मनीषा के प्रतीक, रंग
एकांकी, गद्य – कौमुदी, धर्मवीर भारती के नाम पत्र, व्यावहारिक हिन्दी, शिव
शम्भू के चिट्ठे और अन्य निबंध तथा साहित्य-सुबोध। इसके अलावा डॉ. हरीश
नवल ने कई पुस्तकों में सह-लेखक का दायित्व भी निभाया है, जिसमें प्रमुख है
72 पुस्तकों में सहयोगी रचनाका, बारतीय लघुकथा-कोश में 10 रचनाएँ, विश्व
लघुकथा-कोश में 10 रचनाएँ, एन. एनथॉलजि ऑफ मॉडर्न इंडियन राइटिंग, कराची,
पाकिस्तान से प्रकाशित, भारतीय रंग संदर्भ पर लेख (उर्दू में) तथा भारतीय
समकालीन साहित्य, बुल्गारिया में रचना इत्यादि। इनकी कई रचनाओं का
अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, बुल्गारियन, उर्दू व डोगरी में अनुवाद किया जा
चुका है।
डॉ. हरीश नवल बतौर स्तम्भकार इंडिया टुडे,
नवभारत टाइम्स, दिल्ली प्रेस की पत्रिकाएं, कल्पांत, राज-सरोकार तथा
जनवाणी (मॉरीशस) से जुड़े रहें हैं। इन्होने इंडिया टुडे, माया, हिंद
वार्ता, गगनांचल और सत्ताचक्र के सात अपनी पत्रकारिता के जौहर भी दिखाएँ
हैं।
इनकी कई महत्वपूर्ण रचनाओं को
विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। जिसमें प्रमुख है
पैजाब विश्वविद्यालय, बी.ए., उस्मानिया वि.वि., बी.ए., मुंबई शिक्षा बोर्ड,
दशम, नेशनल ओपन स्कूल, माध्यमिक तथा साउथ पेसिफिक वि.वि. (फिजी), बी.ए.।
पूर्व में डॉ. हरीश नवल इंडिया टुडे के
साथ साहित्य सलाहकार, एन.डी.टी.वी के साथ हिन्दी प्रोग्रामिंग परामर्शदाता,
आकाशवाणी दिल्ली के साथ कार्यक्रम सलाहकार, बालमंच के साथ सलाहकार, जागृति
मंच के साथ मुख्य परामर्शदाता, विश्व युवा संगठन के अध्यक्ष, तृतीय विश्व
हिन्दी सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय सह-संयोजक पुरस्कार समिति तथा हिन्दी
वार्ता के सलाहकार संपादक के पद पर काम कर चुके हैं।
डॉ. हरीश नवल को कई पुरस्कारों से नवाजा
गया है। जिसमें प्रमुख है, युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार, गोविन्द वल्लभ पंत
पुरस्कार (भारत सरकार), साहित्य कला परिषद् पुरस्कार (दिल्ली राज्य),
साहित्यमणि (बिहार), बालकन जी बारी इंटरनेशनल सम्मान, साहित्य-गौरव
(हरियाणा), मीरा-मौर (दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन), जैनेन्द्र कुमार
सम्मान, फिक्र तौंसवी सम्मान, माध्यम का अट्टाहास सम्मान, काका हाथरसी
सम्मान व हास्य रत्न, हिन्दी-उर्दू अवार्ड(उत्तर प्रदेश) आदि।
इन्होने टी.वी व रेडियो लेखन में भी अपनी
दक्षता का परिचय दिया है। इन्होने 31 टी.वी कार्यक्रमों और धारावाहिक आदि
का लेकन किया है। जिसमें संसार, थोड़ी खुशी थोड़ा ग़म, निष्काम ऋषि, हिन्दी
रंगयात्रा, थोड़ी सी जि़न्दगी भी सम्मिलित हैं। इन्होने 100 से अधिक
रेडियो कार्यक्रम, धारावाहिकों तथा नाटकों का लेखन किया है।
डॉक्टर साहेब को विदेश में भी अध्यापन का
विस्तृत अनुभव है। इन्होने विजिटिंग व्याख्याता के रुप में सोफिया वि.वि.
बुल्गारिया तथा मुख्य परीक्षक मॉरीशस विश्वविद्यालय (महात्मा गांधी
संस्थान)का दौरा किया है। विजिटिंग वक्ता के रुप में डॉक्टर साहेब जापान के
टोक्यो वि.वि. व ओसाका वि.वि भी जा चुके हैं। इसके अलावा भारतीय प्रतिनिधि
के रुप में डॉ. हरीश नवल ने अमरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, फ्रांस, बेल्जियम,
जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, ग्रीस, ऑस्ट्रिया, थाईलैण्ड, ओमान, आबू-धाबी, अलैन,
शारजाह, दुबई, मलेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका, बहामा तथा हॉलैण्ड की
साहित्यिक व सांस्कृतिक यात्राएँ की हैं।
डॉ. हरीश नवल के रचनाकर्म पर श्री नगर,
गढ़वाल विश्वविद्यालय, चेन्नई वि.वि., जीवाजी ग्वालियर वि.वि., रुहेलखण्ड
वि.वि. से एम.फिल. व पी.एच.डी के लिए शोध प्रबंध पारित किया जा चुका है।
सम्प्रति स्वतंत्र रचनाकर्म, अध्यक्ष ‘शब्द सेतु’ व निदेशक रोटरी क्लब
अपटाऊन।
VANAPRASTHA / Prof.Dr Makhan Lal Das
Vanaprastha |
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by Prof. Dr. Makhan Lal Das |
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Vah Bulle Shah वाह बुल्ले शाह
मक्के गयां, गल मुकदी नहीं, भावें सौ सौ जुम्मे पढ़ आईये
गंगा गया गल मुकदी नहीं, भावें सौ सौ गोते खाईये
गया (मोक्ष स्थान) गयां गल मुकदी नहीं, भावें सौ सौ पंड पढ़ आइये
बुल्ले शाह गल तईयों मुकदी, जड़ों मै (अहंकार) नु दिलों गवईये
When he was six months old, his parents relocated to Malakwal. His father later got a job in Pandoke, about 50 miles southeast of Kasur. Bulleh Shah received his early schooling in Pandoke and moved to Kasur for higher education. He also received education from Maulana Mohiyuddin. His spiritual teacher was the Qadiri Sufi Shah Inayat Qadiri, who was a member of the Arain tribe of Lahore.
Life
Bulleh Shah lived in the same period as the Sindhi Sufi poet, Shah Abdul Latif Bhatai (1689–1752). His lifespan also overlapped with the Punjabi poet Waris Shah (1722–1798), of Heer Ranjha fame, and the Sindhi Sufi poet Abdul Wahab (1739–1829), better known by his pen-name, Sachal Sarmast (“truth seeking leader of the intoxicated ones”). Amongst Urdu poets, Bulleh Shah lived 400 miles away from Mir Taqi Mir (1723–1810) of Agra.
Poetry Style
The verse form Bulleh Shah primarily employed is called the Kafi, a style of Punjabi, Sindhi and Saraiki poetry used not only by the Sufis of Sindh and Punjab, but also by Sikh gurus.Bulleh Shah’s poetry and philosophy questioned the Islamic religious orthodoxy of his day.[citation needed]
A Beacon of Peace
Bulleh Shah's time was marked with communal strife between Muslims and Sikhs. But in that age Baba Bulleh Shah was a beacon of hope and peace for the citizens of Punjab. While Bulleh Shah was in Pandoke, Muslims killed a young Sikh man who was riding through their village in retaliation for murder of some Muslims by Sikhs. Baba Bulleh Shah denounced the murder of an innocent Sikh and was censured by the mullas and muftis of Pandoke. Bulleh Shah maintained that violence was not the answer to violence. Bulleh Shah also hailed the ninth Sikh Guru, Guru Tegh Bahadur as a Ghazi, or "religious warrior", which caused controversy among Muslims of that time.[citation needed]Humanist
Bulleh Shah’s writings represent him as a humanist, someone providing solutions to the sociological problems of the world around him as he lives through it, describing the turbulence his motherland of Punjab is passing through, while concurrently searching for God. His poetry highlights his mystical spiritual voyage through the four stages of Sufism: Shariat (Path), Tariqat (Observance), Haqiqat (Truth) and Marfat (Union). The simplicity with which Bulleh Shah has been able to address the complex fundamental issues of life and humanity is a large part of his appeal. Thus, many people have put his kafis to music, from humble street-singers to renowned Sufi singers like Nusrat Fateh Ali Khan, Pathanay Khan, Abida Parveen, the Waddali Brothers and Sain Zahoor, from the synthesized techno qawwali remixes of UK-based Asian artists to the Pakistani rock band Junoon.Amitabh Bachchan : A Great Human Being
Son of well known poet Harivansh Rai Bachchan and Teji Bachchan. He has a brother named Ajitabh. He completed his education from Uttar Pradesh and moved to Bombay to find work as a film star, in vain though, as film-makers preferred someone with a fairer skin, and he was not quite fair enough. But they did use one of his other assets - his deep baritone voice - which was used for narration and background commentary. He was successful in being cast in Saat Hindustani. He got his break in Bollywood after a letter of introduction from the then Prime Minister Mrs. Indira Gandhi, as he was a friend of her son, Rajiv Gandhi. This is how Amitabh made an entry in Bollywood, starting with Zanjeer, co-starred with his future wife Jaya Bhaduri, and since then there has been no looking back.
He married Jaya Bhaduri, an actress in her own rights, and they had two children, Shweta and Abhishek. Shweta is married, lives a non-filmy life and has two children.
Being friends with Rajiv Gandhi, got him to decide to run for seat in the Congress from his hometown but had to leave midterm because of controversies, particularly after Rajiv and he were implicated in the now infamous "Bofors" case along with the U.K. based Hinduja Brothers.
After a four year break, he was back in the unsuccessful Mrityudaata (1997), a comeback which the actor wanted to forget. Critics written him off but his career was saved with Bade Miyan Chote Miyan (1998). But four flops in 1999 and incurring debt of over 90 Crores rupees of his sinking company ABCL saw him at an all-time low. To make matters worse, after the defeat of the Congress party, Amitabh lost considerable political support, the opposition made him a target, and his credit rating deteriorated to such an extent that a leading nationalized bank, Canara Bank, sued him for outstanding loans. He did bounce back, presenting the Indian version of Who Wants To Be A Millionaire called "Kaun Banega Crorepati?" (2000). After a series of hits with Mohabbatein (2000), Kabhi Khushi Kabhie Gham... (2001) and Baghban (2003) and Khakee (2004), this elderly Bachchan is showing no signs of slowing down and proving the critics wrong once again.His son, Abhishek, is also an actor by his own rights.
Aishwarya Rai, and Abhishek, were formally engaged on Sunday January 14, 2007, at the Bachchan residence in Juhu, Bombay, with the marriage taking place at the Bachchan residence on April 20, 2007.
On November 16, 2011, he became a Dada (Paternal Grandfather) when Aishwarya gave birth to a daughter in Mumbai Hospital. He is already a Nana (maternal grandfather) to Navya Naveli and Agastye - Shweta's children.
He continues to be one of the busiest actors and singers in Bollywood as well as on TV, as can be seen from the commercials that he appears on, especially on Sahara One. Looks like there are no limits for this super-star and once the "Angry Young Man" of Bollywood.
Saturday, June 1, 2013
प्रवासी दुनिया' में अशोक लव की कविता ' जी,भाई साहब '
अंक : एक जून 2013
अशोक लव की कविता – जी भाई साहब
“बस अब कविता- कहानी सब छूट गया है
घुटनों का दर्द बढ़ गया है
तुम्हारी भाभी ने आम का जो पेड़ लगाया था
वह तेज़ आँधी से उखड़ गया है।
वह तो चली गई
कई बरस हो गए
आम का पेड़ देखकर
फल खाकर
अच्छा लगता था
अब
और सन्नाटा पसर गया है।
इधर पानी एक बूँद नहीं पड़ा हैघुटनों का दर्द बढ़ गया है
तुम्हारी भाभी ने आम का जो पेड़ लगाया था
वह तेज़ आँधी से उखड़ गया है।
वह तो चली गई
कई बरस हो गए
आम का पेड़ देखकर
फल खाकर
अच्छा लगता था
अब
और सन्नाटा पसर गया है।
एकदम सूखा पड़ गया है
लोग भूखे प्यासे मर रहे हैं
नक्सली और मार रहे हैं
नेता लोग सब क्या करेंगे?
यहाँ तो एक-एक मिनिस्टर भ्रष्ट है
सी बी आई के छापे पड़े हैं
कई मिनिस्टर छिप-छिपा रहे हैं
खिला-विला देंगे
सब केस बंद हो जाएँगे।
दिखना कम हो गया है
अब पढ़ना – पढ़ाना छूटता जा रहा है।
तुम्हारी कविता वाली पुस्तक मिल गई है
समीक्षा भी लिख देंगे
एक लड़की आती है
पी एच डी कर रही है
बोल-बोलकर उससे लिखवा देंगे।
बाकी सब क्या कहें
कविता लिखना अलग बात है
ज़िंदगी जीना अलग बात है। ”
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